होली दशा
चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का पूजन तथा व्रत किया जाता है।होली के 10 दिन बाद मनाए जाने के कारण इसे होली दशा कहा जाता है। मनुष्य की दशा ठीक ना हो तो कई बार निरंतर उपाय करने के बाद भी वह स्वास्थ्य की दृष्टि से परेशान रहता है तो कई बार आर्थिक परेशानियां उसका पीछा नहीं छोड़ती। भाग्य साथ नहीं देता और उसके बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं अपने घर परिवार की इसी दशा को सुधारने की मनोकामना से सुहागिन महिलाएं चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का पूजन एवं व्रत करती है।
अनेक स्थानों पर यह व्रत होली के अगले दिन से ही प्रारंभ हो जाता है। प्रथम दिन महिलाएं दीवार पर स्वास्तिक बनाकर मेहंदी और कुमकुम की दस-दस बिंदिया बनाती है और इसके बाद 9 दिन तक रोज इनका पूजन करती है और दशा माता की कथाएं सुनती हैं। महिलाएं 9 दिन तक व्रत रखती हैं तथा फिर दसवें दिन अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी को पीपल के पेड़ की छांव में दशा माता का पूजन कर व्रत संपन्न करती है
पूजन सामग्री:-
जल का कलश, कुमकुम, मेहंदी, हल्दी, चंदन, अक्षत, मौली, हार-फूल, दीपक, धूप ,अगरबत्ती, सुहाग सामग्री ,कच्चा सूत, गेहूं ,10 सूत का डोरा, नैवेद्य(भोग),पान का पत्ता आदि।
पूजन विधि (कैसे करे पूजा ):-
दशमी के दिन पीपल के पेड़ की छांव में दशा माता का पूजन किया जाता है एक डंडी वाले पान के पत्ते पर चंदन से दशामाता बनाई जाती है और पीपल के पेड़ पर एक स्वास्तिक बनाकर मेहंदी और कुमकुम से 10-10 बिंदिया लगाई जाती है। इसके पश्चात कुमकुम, हल्दी, मेहंदी,हार -पुष्प,सुहाग सामग्री आदि चढ़ाकर दशा माता तथा पीपल के पेड़ का पूजन किया जाता है।कच्चे सूत के दस तार के डोरे का भी पूजन किया जाता है। पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा की जाती है साथ ही लडडू, हलवे या मीठे रोठ का भोग भी लगाया जाता है।
पूजन के बाद दशा माता की कथा सुनी जाती है और आरती की जाती है। कथा सुनने के बाद महिलाएं नया डोरा गले में पहन लेती है , पुराने डोरे को पीपल के पेड़ की जड़ के पास गेहूं आदि के साथ मिट्टी में दबा दिया जाता है। पूजन के बाद महिलाएं पीपल के पेड़ की छाल को खुरचकर घर ले जाती है और इसे साफ कपड़े में लपेटकर अलमारी या तिजोरी में रखती हैं। पीपल की छाल को धन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है।
माना जाता है कि दशा माता के डोरे को पूरा साल पहनना चाहिए और अगले साल पुराना डोरा उतार कर नया धारण करना चाहिए। किंतु यदि ऐसा ना कर सके तो कुछ दिन पहनने के बाद कोई अच्छा दिन देखकर उस डोरे को उतार कर पूजा स्थल में रख देना चाहिए। यदि इतना भी ना कर सके तो उसी रात को डोरे को उतारकर पूजा स्थल में रख देना चाहिए और अगले वर्ष पूजा के बाद पीपल की जड़ के पास मिट्टी में दबा देना चाहिए।
डोरा कैसे बनाएं:-
कच्चे सूत के 9 तार और एक सूत व्रत करने वाली महिला के आंचल से लेकर 10 सूत का डोरा बनाते हैं। इसमें यदि ऐसा ना कर सके तो कच्चे सूत के ही 10 तार लेकर डोरा बना लेते हैं, इसे हल्दी के रंग से रंग कर इसमें 10 गाँठे लगा ली जाती है। पूजन के समय नए डोरे का भी पूजन किया जाता है और पुराने डोरे को पूजन के पश्चात पीपल के पेड़ की जड़ के पास मिट्टी में दबा दिया जाता है।
व्रत विधान:-
इस दिन महिलाएं प्रातः काल स्नान कर संपूर्ण श्रृंगार करती है और व्रत का संकल्प लेती है। इस दिन महिलाएं एक ही समय भोजन करती है। भोजन में नमक का उपयोग नहीं किया जाता तथा भोजन में एक ही प्रकार के अन्न का, विशेषकर गेहूं का प्रयोग किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि दशा माता के पूजन से पहले घर में किसी मेहमान का स्वागत नहीं किया जाता अर्थात उसे भोजन आदि बनाकर नहीं खिलाया जाता।
दशा माता की कहानी:-
प्राचीन समय में राजा नल अपनी रानी दमयंती के साथ सुख पूर्वक राज्य करते थ। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी, उनके दो पुत्र थे। एक बार होली दशा के दिन एक ब्राह्मणी राज महल में आई और रानी से कहा दशा माता का डोरा ले लो। दासी बोली- रानी साहिबा आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता का पूजन और व्रत करती हैं तथा इस डोरे की पूजा करके गले में बांधती है जिससे अपने घर में सुख- समृद्धि आती है। अतः रानी ने डोरा ले लिया और विधि के अनुसार पूजन करके गले में बांध लिया।कुछ दिनों बाद राजा नल ने रानी दमयंती के गले में डोरा बंधा हुआ देखा तो बहुत नाराज हुए। कहने लगे कि इतने सोने के गहने पहनने के बाद भी आपने यह डोरा क्यों पहन रखा है। रानी कुछ कहती इसके पहले ही राजा ने उस डोरे को तोड़कर जमीन पर फेंक दिया रानी दमयंती ने डोरे को जमीन से उठाया और राजा से कहा यह तो दशा माता का डोरा है,आपने इसका अपमान करके अच्छा नहीं किया। जब रात को राजा सो रहे थे तब दशामाता उनके सपने में बुढ़िया के रूप में आई और राजा से कहा हे राजा तेरी अच्छी दशा चल रही थी किंतु तूने मेरा अपमान करके अच्छा नहीं किया ऐसा कहकर बुढ़िया (दशामाता) अंतर्ध्यान हो गई। अब जैसे जैसे समय बीतता गया राजा के ठाठ -बाट, धन- दौलत, सुख शांति सब कुछ धीरे-धीरे नष्ट होने लग गया और भूखे मरने की नौबत आ गई।एक दिन राजा ने दमयंती से कहा कि तुम अपने दोनों बच्चों को लेकर मायके चली जाओ रानी ने कहा मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी जिस प्रकार आप रहेंगे मैं भी वैसे ही आपके साथ रह लूंगी। तब राजा ने कहा हम अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में चलते हैं वहां जो भी काम मिलेगा वही कर लेंगे। इस प्रकार राजा नल और दमयंती अपने राज्य को छोड़कर निकल गए।
चलते-चलते रास्ते में भील राजा का महल दिखाई दिया। वहां राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ कर आगे बढ़ गए। आगे चले तो रास्ते में राजा के मित्र का गाँव आया। राजा ने रानी से कहा चलो हमारे मित्र के घर चलते हैं, मित्र के घर पहुँचने पर उनका खूब आदर सत्कार हुआ और मित्र ने उन्हें अपने शयनकक्ष में सुलाया। उसी कमरे में मोर की आकृति की खूंटी पर मित्र राजा मित्र की पत्नी का हीरों का हार टंगा हुआ था,आधी रात में जब रानी की नींद खुली तो उसने देखा कि वह बेजान खूंटी हार को निगल रही है यह देखकर रानी ने तुरंत राजा को जगाया।दोनों ने सोचा कि सुबह होने पर मित्र को क्या जवाब देंगे इसलिए इस समय यहां से चले जाना चाहिए। राजा- रानी दोनों रात को ही वहां से चल दिए सुबह होने पर मित्र की पत्नी ने खूंटी पर अपना हार नहीं देखा तो पति से बोली -तुम्हारे मित्र कैसे हैं जो मेरा हार चुराकर रात में ही भाग गए। मित्र ने अपनी पत्नी को समझाया कि मेरा मित्र कदापि ऐसा नहीं कर सकता धीरज रखो और कृपया उसे चोर मत कहो।
आगे चलने पर उन्हें एक नदी मिली राजा ने नदी में से मछलियां निकालकर रानी से कहा- तुम इन मछलियों को पकाओ तब तक मैं गांँव में से परोसा लेकर आता हूंँ , गांव का नगर सेठ सभी लोगों को भोजन करा रहा है। राजा गांँव में गया और परोसा लेकर आ रहा था कि रास्ते में चील ने झपट्टा मारा, जिससे सारा भोजन नीचे गिर गया। राजा ने सोचा कि रानी को लगेगा कि राजा तो भोजन करके आ गया और मेरे लिए कुछ भी नहीं लाया। उधर रानी मछलियां पकाने लगी तो दुर्भाग्य से सभी मछलियां जीवित होकर नदी में चली गई। इधर रानी उदास होकर सोचने लगी कि राजा सोचेंगे कि सारी मछलियां रानी खुद ही खा गई। जब राजा आए तो मन ही मन समझ गए और वहां से आगे चल दिए।
चलते-चलते रानी के मायके का गांँव आया, राजा ने कहा- तुम अपने मायके चली जाओ वहांँ दासी का कोई काम कर लेना, मैं इसी गांँव में कहीं कुछ काम ढूंढ लूंगा। इस प्रकार रानी महल में दासी का काम करने लगी और राजा तेली के यहां काम करने लग गए। दोनों को काम करते-करते बहुत दिन हो गए, जब होली दशा का दिन आया तब सभी रानियों ने सिर धो कर स्नान किया ,दासी ने भी स्नान किया। दासी ने रानियों के बाल बनाए तो राजमाता ने कहा कि मैं भी तुम्हारे बाल बना देती हूंँ। ऐसा कह कर जब राजमाता दासी बनी रानी दमयंती के बाल बनाने लगी तो उन्होंने दासी के सिर पर एक निशान देखा, यह देखकर राजमाता की आंँखें भर आई और आंसू छलक कर दासी की पीठ पर गिर गए। दासी ने पूछा -आप क्यों रो रही हैं, राजमाता ने कहा -मेरी बेटी के सिर में भी ऐसा ही निशान है यही देखकर मुझे उसकी याद आ गई। तब दासी ने कहा मैं आपकी बेटी ही हूंँ, दशा माता के कोप से मेरे बुरे दिन चल रहे हैं, इसीलिए यहां आ गई। माता ने कहा- बेटी तूने यह बात हमसे क्यों छुपाई। रानी दमयंती बोली- मां अगर मैं सब कुछ बता देती तो मेरे बुरे दिन नहीं करते। आज मैं दशा माता का व्रत करूंगी और उनसे गलती की क्षमा याचना करूंगी। राजमाता ने बेटी से पूछा कि हमारे जमाई राजा कहांँ है, तब बेटी बोली कि वह भी इसी गांँव में किसी तेली के घर काम कर रहे हैं। गांँव में उनकी खोज कराई गई और उन्हें पूरे मान सम्मान के साथ महल में लाया गया। जमाई राजा को स्नान कराया गया, नए वस्त्र पहनाये है और उनके लिए पकवान बनाए गए।
अब दशा माता के आशीर्वाद से राजा नल और रानी दमयंती के अच्छे दिन लौट आए। कुछ दिन वही बिताने के बाद वह अपने राज्य की ओर चल दिए।रानी दमयंती के पिता ने उन्हें खूब सारा धन, लाव लश्कर, हाथी-घोड़े आदि देकर विदा किया। रास्ते में वही जगहआई जहां रानी ने मछलियों को पकाया था और राजा के हाथ से चील ने झपट्टा मारकर भोजन गिरा दिया था। तब राजा ने कहा -तुमने सोचा होगा कि मैंने अकेले भोजन कर लिया है परंतु चील ने झपट्टा मार कर गिरा दिया था। तब रानी बोली- आपने भी सोचा होगा कि मैंने मछलियां अकेले ही खा ली परंतु वह तो जीवित होकर नदी में चली गई थी।
चलते-चलते अब राजा की बहन का गांँव आया, राजा ने बहन के यहां खबर भेजी। बहन ने खबर देने वाले से पूछा कि उनके हाल चाल कैसे हैं तो उसने बताया कि वह बहुत अच्छी दशा में है, उनके साथ हाथी-घोड़े, लाव-लश्कर है। यह सुनकर राजा की बहन मोतियों की थाल सजाकर लाई। तभी रानी दमयंती ने धरती माता से प्रार्थना की और कहा मांँ आज मेरी अमानत मुझे वापस दे दो। यह कहकर उस जगह को खोदा ,जहां कांदा रोटी गाड़ दिया था। खोदने पर रोटी तो सोने की और कांदा चांदी का हो गया। यह दोनों चीज बहन की थाली में डाल दी और आगे चलने की तैयारी करने लगे। वहांँ से चलकर राजा अपने मित्र के घर पहुंँचे। मित्र ने पहले के समान ही उनका आदर सत्कार किया और रात को उन्हें अपने शयनकक्ष में सुलाया। मोरनी वाली खूंटी के हार निगलने वाली बात को याद करके उन्हें नींद नहीं आई। आधी रात के समय वही मोरनी वाली खूंटी हार को उगलने लगी तो राजा ने अपने मित्र को जगाया और रानी ने मित्र की पत्नी को जगा कर दिखाया कि आपका हार तो इसने निगल लिया था, आपने सोचा होगा कि हम हार चुरा कर ले गए।
दूसरे दिन प्रातः काल राजा- रानी वहांँ से चल दिए और भील राजा के यहांँ पहुंँचे, वहां जाकर उन्होंने राजा से अपने पुत्रों को मांँगा तो राजा ने देने से मना कर दिया। तब गांँव के लोगों ने उन बच्चों को वापस दिलाया। राजा- रानी अपने बच्चों को लेकर जब अपने राज्य के निकट पहुंँचे तो नगर वासियों ने लाव- लश्कर के साथ उन्हें आते हुए देखा तो सभी बहुत प्रसन्न हुए। सब ने गाजे-बाजे के साथ उनका स्वागत किया और उन्हें महल तक पहुंचाया। राजा का पहले जैसा ठाठ-बाट,वैभव था ,सब कुछ वैसा ही हो गया।
हे दशा माता जैसा कोप राजा नल और दमयंती पर किया था वैसा किसी पर मत करना और बाद में जैसी कृपा करी थी वैसी सभी पर करना।