भगवान कार्तिकेय से जुडी कथाएं
शिव पुत्र भगवान कार्तिकेय दक्षिण भारत में मुरगन स्वामी, सुब्रमण्यम स्वामी, कुमार, शानमुख जैसे कई नामों से जाने जाते हैं। माना जाता है कि कार्तिकेय अपने पिता भगवान शिव से किसी बात पर नाराज होकर दक्षिण की ओर चले गए थे और फिर वही बस गए शायद इसीलिए उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को लेकर कई कहानियां प्रचलित है।
मुरुगन स्वामी (कार्तिकेय) को युद्ध और विजय का देवता माना जाता है। इनके ज्यादातर भक्त तमिल हिंदू हैं। इनका वाहन मोर है और इनका अस्त्र वेल है जो स्वयं माता पार्वती ने इन्हें प्रदान किया था।
केवल दक्षिण भारत ही नहीं श्रीलंका और मलेशिया में भी इनके प्रसिद्ध मंदिर है। मलेशिया मे मुरुगन स्वामी की सबसे बड़ी मूर्ति है। कई स्थानों पर इनके बाल स्वरूप की पूजा की जाती है ठीक उसी तरह जैसे उत्तर भारत में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है।
भगवान कार्तिकेय के जन्म को लेकर मुख्य रूप से दो कहानियां प्रचलित हैं----
1 : शिव पार्वती के पुत्र के रूप में---
2 :कृतिकाओं के पुत्र के रुप में---
कथा 1 -----
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार माता सती अपने पिता राजा दक्ष द्वारा ,अपने पति भगवान शिव का अपमान किए जाने के कारण यज्ञ की अग्नि में ही आत्मदाह कर लेती है ऐसे में समस्त संसार शक्ति विहीन हो जाता है और भगवान शिव सती के वियोग में अपने समस्त दायित्वों को त्याग कर तपस्या में लीन हो जाते हैं।
शिव एवं शक्ति की अनुपस्थिति में असुरों का आतंक अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है सूरपद्म और तारकासुर नामक राक्षसों के आतंक से स्वयं देवता भी भयभीत हो जाते हैं। सभी देवता ब्रह्मदेव के पास जाकर मदद की गुहार लगाते हैं तब ब्रम्ह देव बताते हैं कि माता सती ने राजा हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया है और केवल शिव और पार्वती का पुत्र ही असुरों का विनाश कर सकता है। शिव की तपस्या भंग करने के लिए देवता कामदेव की सहायता लेते हैं और तब शिव और पार्वती का विवाह होता है जिसके फलस्वरुप कार्तिकेय का जन्म होता है जो असुरों का विनाश करते हैं।
-कथा 2 ----
दक्षिण में प्रचलित कथा के अनुसार शिव पार्वती के विवाह के पश्चात अर्थात शिव और शक्ति के एक हो जाने पर भगवान शिव पंच महाभूतों अर्थात पृथ्वी ,जल, अग्नि, वायु और आकाश को शक्ति के साथ जोड़कर 6 शक्तियों का एक शक्तिपुंज उत्पन्न करते हैं और इसे सरवन सरोवर तक ले जाने का कार्य अग्निदेव को सौंपते हैं परंतु इस शक्ति पुंज के ताप को स्वयं अग्निदेव भी सहन नहीं कर पाते और गंगा जी की सहायता लेते हैं। गंगा जी शक्तिपुंज को सरवन तक ले जाती है जहां 6 सिर वाले शरवन भव का जन्म होता है। इन्हें 6 कृतिकाय पालती है जो आगे चलकर कृतिका नक्षत्र के रूप में पूजनीय होती है। कृतिकाओं ने इन्हें अपना पुत्र बनाया था इसीलिए इनका नाम कार्तिकेय पड़ा।
कार्तिकेय का विवाह ----
उत्तर भारत में जहां भगवान कार्तिकेय के अविवाहित होने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं वहीं दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय- मुरुगन स्वामी अपनी दो पत्नियों के साथ विराजित है।
देवसेना और वल्ली इनकी दो पत्नियां हैं जो क्रमशः इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति की प्रतीक मानी जाती है। देवसेना इंद्रदेव की पुत्री है। माना जाता है कि जब कार्तिकेय ने देवताओं को असुरों के आतंक से मुक्त कराया था तो इंद्र देव ने उपहार स्वरूप अपनी पुत्री उन्हें सौंपी थी। वल्ली एक जनजातीय प्रमुख की बेटी है जिससे उन्होंने प्रेम विवाह किया था। अपने पूर्व जन्म में देवसेना और वल्ली दोनों बहने थी इन्होंने मुरुगन स्वामी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया था जिससे प्रसन्न होकर मुरगन स्वामी ने अगले जन्म में इनकी इच्छा पूरी करने का वरदान दिया था।
ॐ का रहस्य ----
भगवान कार्तिकेय ने स्वयं अपने पिता शिव को ॐ का रहस्य समझाया था, जो सृष्टि रचयिता ब्रम्हदेव भी समझाने में सक्षम नहीं थे। ऐसा करके उन्होंने अपने ही पिता के गुरु बनने का गौरव हासिल किया था।