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Saturday, March 10, 2018

होली की कथाएँ


होली के त्यौहार  से जुडी कथाए 

फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगो का यह त्योहार पारम्परिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलाई जाती है जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन को धुलेंडी  कहा जाता है इस दिन लोग एक दूसरे को रंग,अबीर; गुलाल लगाते है। ढोल  बजा कर होली के गीत गाए जाते है और लोग अपनी पुरानी कटुता को भुला कर गले मिलते है।
                 


                इस त्योहार के साथ  कई पोराणिक कथाएँ और मान्यताएँ जुडी हुई है।

             

Holika and Prahlad 
कथा १ -  असुर राजा हिरणाकश्यप भगवान विष्णु से शत्रुता  रखता था। उसने अपनी शक्ति के घमंड में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया और घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी। उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के कहने  के बावजूद प्रहलाद भगवान  विष्णु की भक्ति करता रहा। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परंतु स्वयं भगवान उसकी  रक्षा करते रहे। राजा की बहन होलिका को भगवान शिव से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर आग  उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर  को ओढकर प्रहलाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। परंतु विष्णु जी की कृपा से वह चादर उड़कर  प्रहलाद के ऊपर आ गई जिससे प्रहलाद की जान बच गई और होलीका अग्नि में जल गई। माना जाता है तभी से होलिका दहन की प्रथा शुरू हुई।

Lord Shiva and Kamdev
कथा २  -होली की एक कहानी भगवान शिव से भी जुड़ी हुई है कहा जाता है कि माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना  थी परंतु भगवान शिव तपस्या में लीन थे. ऐसे में भगवान शिव और पार्वती का विवाह संपन्न कराने के लिए कामदेव ने शिव पर बाण चलाकर उनके तप को भंग दिया। तपस्या भंग हो जाने के कारण शिव को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी जिसके कारण कामदेव भस्म हो गए।  कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगी और भगवान शिव से  कामदेव को पुनः जीवित करने की गुहार लगाई।  रति की प्रार्थना पर भगवान शिव ने कामदेव को पुनः जीवित किया।  माना जाता है कि कामदेव के पुनः जीवित होने की खुशी को ही रंगो के त्यौहार के रुप में मनाया गया था।

कथा ३ -होली दहन से जुड़ी हुई एक और कथा राजा रघु के शासन काल की है उनके शासनकाल में एक असुर  महिला को वरदान प्राप्ति के कारण मारना मुश्किल हो था ऐसे में गुरु वशिष्ठ ने उपाय बताया कि यदि छोटे बच्चे लकड़ियां और घास को इकट्ठा करके उसमें आग लगाकर उसके चारों ओर परिक्रमा करें, नृत्य करें, ताली बजाएं तो इससे उसकी आसुरी शक्तियां कम हो जाएगी और उसका वध किया जा सकेगा।माना जाता है कि तभी से आसुरी शक्तियों को ख़तम  करने के उद्देश्य से इस पर्व को मनाया जाता रहा है।