Saturday, March 10, 2018

शीतला सप्तमी


शीतला सप्तमी 



माता का स्वरूप

स्कंद पुराण के अनुसार माता शीतला को हाथों में कलश, सूप ,झाड़ू तथा नीम के पत्ते लिए हुए गदर्भ(गधा) पर विराजित बताया गया है। जिस तरह लक्ष्मी जी को धन की तथा सरस्वती जी को विद्या की देवी माना गया है ठीक उसी प्रकार शीतला माता को स्वच्छता की प्रतीक,आरोग्यता देने वाली देवी माना गया है। उनके स्वरूप की व्याख्या को लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं।

झाड़ू- झाड़ू हमें अपने परिवेश को स्वच्छ रखने का संदेश देती है।
सूप-सूप जिसका काम अनाज साफ करना होता है हमें स्वच्छ भोजन करने की प्रेरणा देता है क्योंकि ज्यादातर बीमारियां खराब भोजन से होती है।
कलश- जल से भरा हुआ कलश जल को प्रदूषण मुक्त रखने का संदेश देता है।
नीम- नीम रोगाणुनाशक का कार्य करता है जिससे बीमारियां उत्पन्न नहीं होती।
गधा- गधा हमें धैर्य रख कर निरंतर मेहनत करने की प्रेरणा देता है।

                     एक अन्य मान्यता के अनुसार शीतला माता को चेचक जैसे रोगों की देवी बताया गया है और उसी के अनुसार उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है। चेचक में व्यक्ति व्याकुल हो जाता है, सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं और नीम के पत्ते उन फोड़ों के लिए रोगाणुनाशक का कार्य करते हैं। रोगी को ठंडा जल दिया जाता है अतः कलश का महत्व है और गधे की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं इसीलिए माता को गदर्भ(गधा) पर विराजित बताया गया है।
                  स्वरूप को लेकर मान्यताएं चाहे जो भी हो पर सभी उन्हें स्वच्छताऔरआरोग्यता की अधिष्ठात्री देवी ही बनाती है।

शीतला माता का पूजन विधान

होली के त्यौहार के सातवें दिन अर्थात चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला माता की पूजा की जाती है इसलिए इसे शीतला सप्तमी भी कहा जाता है। चैत्र महीने में जब गर्मी शुरू हो चुकी होती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार होने लगते हैं मान्यता है कि शीतला माता का पूजन करने से परिवार में कभी किसी को चेचक और हैजा जैसे विकार नहीं होते तथा ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले रोग जैसे पीत ज्वर, फोड़े, नेत्र रोग आदि दोष ठीक हो जाते हैं। माना जाता है कि शीतला माता का पूजन करने से परिवार में सबको आरोग्य प्राप्त होता है।
                    शीतला सप्तमी से 1 दिन पहले यानि छठ के दिन शाम को स्त्रियां नहाकर भोग सामग्री बनाती है।अगले दिन सुर्योदय होते ही शीतल जल से स्नान कर पूजन के लिए मंदिरों में जाती हैं,जहां माता को 1 दिन पूर्व बने उसी भोजन का भोग लगाया जाता है।बासी भोजन का भोग लगाए जाने के कारण शीतला सप्तमी को कई स्थानों पर बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। सप्तमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता 1 दिन पूर्व बना भोजन ही नैवेद्य (प्रसाद) के रूप में खाया जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि यह दिन हमें स्मरण कराता है कि ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो चुका है और आज ऋतु का अंतिम दिन है जब बासी भोजन खाया जा सकता है इसके बाद बासी भोजन खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं है।
                    ज्यादातर ग्रामीण और शहरी अंचलों में शीतला माता को पाषाण (पत्थर) की 7 पिण्डियो के रूप में पूजा जाता है। एक चबूतरे पर या वृक्ष के नीचे सात पत्थर की पिण्डियो को माता के रूप में स्थापित कर दिया जाता है। उन्हें  सिंदूर, कुमकुम आदि से श्रृंगारित कर उनका पूजन किया जाता है। शीतला माता को विभिन्न पूजन सामग्री और ठंडे भोज्य पदार्थ अर्पित कर उनकी पूजा की जाती है और आरती गायी जाती है। इसके बाद उस स्थान का भी पूजन कर,जल चढ़ाया जाता है जहां होलिका दहन हुआ था। पूजन के पश्चात महिलाएं घर आकर द्वार पर हल्दी या रेपन और कुमकुम से हाथों के छापे बनाती है जिसे सुख-सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
              शीतला सप्तमी की महत्ता सिर्फ एक ही दिन तक सीमित नहीं है। विवाह पूर्व भी वर/वधू जो माता पूजन करते हैं उसमें शीतला माता की ही पूजा की जाती है। माता की पूजा करने के पीछे मान्यता यह है कि दांपत्य जीवन में प्रवेश करने जा रहे वर/वधु के जीवन में क्रोध और आवेश का ताप ना हो और उनके जीवन में शांति बनी रहे तथा सभी कार्य निर्विघ्न,शांति से संपन्न हो जावे।

पूजन सामग्री 

स्थान ,जाति ,समाज और कुल के अनुसार पूजन सामग्री और विधि में थोड़ा बहुत अंतर आ जाता है किंतु फिर भी सामान्य रूप से जो चीज़ें चढ़ाई जाती हैं।-  दही, चने( भिगोए हुए),दाले(भिगोई हुई), गुड़ के चावल, ज्वार के मीठे ढोकले, ज्वार के गहने, पूरी,राबड़ी,गुलगुले, रेपन(चावल और हल्दी को पीसकर बनाया गया लेप) हार-फूल, नारियल, मेहंदी, कुमकुम,हल्दी, जल का कलश, सुहाग सामग्री................... आदि।

शीतला सप्तमी की कथा 

शीतला माता की कई कहानियाँ प्रचलित हैं उनमें से एक कहानी के अनुसार माना जाता है कि एक बार शीतला माता धरती पर राजस्थान के डूंगरी गाँव में भ्रमण कर रही थी। माँ शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थी तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी फेंका जिससे माता के शरीर में फफोले पड़ गए और पूरे शरीर में जलन होने लगी शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग कर चिल्लाने लगी कि मेरा शरीर जल रहा है कोई मेरी मदद करो लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की मदद नहीं की। तब एक कुम्हारन बुढ़िया ने माता को घर के अंदर बुलाकर बिठाया और उनके ऊपर ठंडा जल डाला जिससे माता की जलन कम हो सके। उसने माँ से कहा कि मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी और थोड़ा सा दही है तुम खा लो तुम्हारे शरीर को ठंडक मिलेगी। फिर कुम्हारन ने माता के बिखरे हुए बाल देख कर कहा कि लाओ मैं तुम्हारी चोटी गुथ देती हूँ जब कुम्हारन माता की चोटी बना रही थी तो उसने देखा कि एक आंख बालों के अंदर छुपी हुई है यह देखकर कुम्हारन डर के मारे घबरा कर भागने लगी तभी माता अपने असली स्वरूप में प्रकट हुई और कहा की बेटी मै शीतला माता हूँ। मैं यहां धरती पर भ्रमण करने आई थी। माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं माता को कहाँ बैठाऊं तब माता बोली बेटी तू क्या सोच रही है तो कुम्हारन हाथ जोड़कर आंखों में आंसू लेते हुए बोली माँ मैं बहुत गरीब हूँ  समझ नहीं आता आपको कहां बैठाऊ।  मेरे घर में ना तो चौकी है ना आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर कुम्हारन के घर पर खड़े गधे की पीठ पर बैठ गई और एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़ कर डलिया में भरकर फेंक दिया और उस कुम्हारन से कहा बेटी अब तुझे जो भी वरदान चाहिए मुझ से माँग ले।  उसने हाथ जोड़कर कहा कि हे माँ आप इसी डूंगरी गॉँव में स्थापित हो जाओ और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को झाड़ू से दूर कर दिया है उसी प्रकार जो भी चैत्र मास की सप्तमी को आप की पूजा करे और आपको ठंडा भोजन चढ़ावे ,उस की दरिद्रता दूर करना,सब मनोकामना  पूरी करना। तब माता तथास्तु कहकर उसी गॉंव में स्थापित  गई।
            हे शीतला माता जैसा आशीष उस कुम्हारन पर बरसाया था वैसा ही हम पर भी बरसाना और हमारी सब मनोकामना पूरी करना।
   
          एक अन्य कथा के अनुसार एक गांव में एक स्त्री रहती थी जो शीतला सप्तमी की पूजा करती थी और उस दिन ठंडा भोजन करती थी। एक बार उस गॉंव में आग लग गई उसका घर छोड़कर बाकी सारे घर जल गए। गॉंव के सब लोगों ने उससे चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने कहा कि मैं शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन लेती हूँ और शीतला माता का पूजन करती हूँ उन्हीं की कृपा से मेरा घर नहीं जला। तब से शीतला सप्तमी  के दिन उस गॉंव में शीतला माता का पूजन आरंभ हो गया।

शीतला माता की आरती -
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।
ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।।
ऊँ जय शीतला माता।

जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता।
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

रोगन से जो पीडित कोई शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।।
ऊँ जय शीतला माता।

शीतल करती जननी तुही है जग त्राता।
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता ।
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।।
ऊँ जय शीतला माता।

शीतला सप्तमी के व्यंजन -
Link:-

Meetha Pua
Meethe chawal
Dahi Vade
Puri
Malpua
Kadhi
Chane
Halwa

8 comments:

showcase said...

Exhaustive information

Unknown said...

VerV nice katha

rajat sharma said...

बहुत सुंदर।

Anonymous said...

Bahut badiya Jaankari

Vaibhav Mandloi said...

Nice one ��

Nilima mandloi said...

Very inofrmative

Nilima mandloi said...

Very nice information. It's amazing to get all such information in one place.

Unknown said...

Thanks a ton for sharing such useful information🙏👌👌